अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति से चीनी अधिकारी बेहद नाराज़ हैं। उनकी निराशा तब और बढ़ गई जब अमेरिकी नेता ने अपने कार्यकाल की शुरुआत ही अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर को और तेज़ कर के की। बीजिंग में इस कदम को आक्रामक और अनुचित माना जा रहा है।
द वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, चीन वॉशिंगटन के साथ एक व्यापक ट्रेड समझौते की उम्मीद कर रहा था। लेकिन ये उम्मीदें उस वक्त टूट गईं जब अमेरिका ने चीनी सामानों पर 34% का व्यापक टैरिफ लगा दिया। इसके जवाब में बीजिंग ने बातचीत से पीछे हटते हुए एक मज़बूत पलटवार की तैयारी शुरू कर दी। अब यह लड़ाई पूरी तरह शुरू हो चुकी है और टकराव साफ नजर आ रहा है।
2 अप्रैल को राष्ट्रपति ट्रंप ने 183 देशों — जिनमें चीन भी शामिल है — पर नए टैरिफ्स की घोषणा की। उन्होंने ट्रेड पार्टनर्स पर "अनुचित प्रथाओं" और "गैर-बाज़ार व्यवहार" का आरोप लगाया। इसका जवाब चीन ने 4 अप्रैल को दिया, जब उसने अमेरिका से आयातित सभी वस्तुओं पर भी 34% का टैरिफ लगा दिया। यह टकराव बढ़ने का एक स्पष्ट संकेत है।
अब तक 16 अमेरिकी कंपनियां प्रभावित हो चुकी हैं, जिनमें ड्रोन निर्माता Skydio भी शामिल है। छह कंपनियों को चीनी बाज़ार में निर्यात की अनुमति से वंचित कर दिया गया है, जबकि 11 कंपनियों को "अविश्वसनीय भागीदारों" की सूची में डाल दिया गया है। इसके अलावा बीजिंग रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण दुर्लभ धातुओं के निर्यात पर नए प्रतिबंधों की तैयारी कर रहा है।
द वॉल स्ट्रीट जर्नल के विश्लेषकों का कहना है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच संवाद की कमी लंबे संघर्ष का खतरा बढ़ा रही है। इस वक्त जो स्थिति बन रही है, वह "जैसे को तैसा" की नीति का उदाहरण है, जो न केवल सार्थक बातचीत की संभावनाओं को कमजोर करती है बल्कि वैश्विक ट्रेड में अस्थिरता को भी बढ़ावा देती है।