प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा ने जापान की आर्थिक स्थिति की तुलना ग्रीस से भी बदतर बताकर राजनीतिक और आर्थिक हलकों में बहस छेड़ दी है। यह एक चौंकाने वाली तुलना है, जिसने देश की राजकोषीय सेहत को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं।
19 मई को संसद में बोलते हुए इशिबा ने नए कर्ज के ज़रिए टैक्स में कटौती के विचार को खारिज कर दिया। उनके अनुसार, जापान की मौजूदा राजकोषीय स्थिति अब ग्रीस से भी खराब हो चुकी है।
इशिबा ने बढ़ती ब्याज दरों और बिगड़ते राजकोषीय माहौल को मुख्य खतरों के रूप में चिन्हित किया। यह टिप्पणी अप्रत्यक्ष रूप से बैंक ऑफ़ जापान (BOJ) की आलोचना मानी जा रही है, जिसने 2024 में अपनी दीर्घकालिक मौद्रिक प्रोत्साहन नीति समाप्त कर दी थी।
इसके बाद से BOJ ने शॉर्ट-टर्म ब्याज दरें 0.5% तक बढ़ा दी हैं, और संकेत दिया है कि जब तक महंगाई दर 2% के लक्ष्य तक नहीं पहुंचती, तब तक दरें और बढ़ सकती हैं। साथ ही, केंद्रीय बैंक ने सरकारी बॉन्ड की खरीद भी घटाई है, जिससे यील्ड बढ़ने और सरकारी कर्ज के ब्याज भुगतान पर दबाव बढ़ने की आशंका है।
इस स्थिति में, इशिबा पर राजनीतिक दबाव बढ़ रहा है कि वे उपभोग कर (consumption tax) समेत टैक्स में कटौती करें और खर्च बढ़ाएं। लेकिन उन्होंने इसका विरोध किया और कहा कि भले ही टैक्स रेवेन्यू बढ़ रहा है, सामाजिक कल्याण की लागत भी उतनी ही तेज़ी से बढ़ रही है।
ब्लूमबर्ग न्यूज के अनुसार, इशिबा ने चेतावनी दी कि जापान का कर्ज-से-GDP अनुपात अब ग्रीस से भी अधिक हो गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि जापान का सार्वजनिक कर्ज सापेक्ष रूप से ग्रीस से ज्यादा है।
हालांकि, जापान को ग्रीस जैसे संकट से बचाए रखने वाले दो प्रमुख कारक हैं —
- यह दुनिया का शीर्ष लेनदार (creditor) देश है।
- इसका अधिकांश सार्वभौम कर्ज घरेलू निवेशकों के पास है, न कि विदेशी हाथों में।
ब्लूमबर्ग के विश्लेषकों का मानना है कि इन्हीं कारणों से जापान अब तक उस तरह के वित्तीय संकट से बचा रहा है, जैसा कि ग्रीस को 2009 की कर्ज संकट के दौरान झेलना पड़ा था।