कुछ विशेषज्ञ एक दिलचस्प परिदृश्य सामने रख रहे हैं: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन द्वारा लगाए गए टैरिफ़ अंततः अदालतों द्वारा “टैरिफ़” किए जा सकते हैं। ये निष्कर्ष यार्डेनी रिसर्च के विश्लेषकों के विश्लेषण पर आधारित हैं, जिनका मानना है कि व्हाइट हाउस को संभावित कानूनी हार के लिए तैयार रहना चाहिए। ऐसे में वर्तमान अमेरिकी टैरिफ़ रणनीति ढह सकती है।
यार्डेनी रिसर्च के अनुसार, वॉशिंगटन स्थित यूएस कोर्ट ऑफ अपील्स फॉर द फेडरल सर्किट यह फैसला सुना सकता है कि राष्ट्रपति ट्रंप के पास टैरिफ़ लगाने का कानूनी अधिकार नहीं है। विशेषज्ञों ने इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट (IEEPA) को इस मामले में प्रमुख कानूनी ढांचे के रूप में उद्धृत किया।
यार्डेनी रिसर्च ने यह भी उल्लेख किया कि प्रशासन इस तरह के नतीजे को लेकर चिंतित है। विश्लेषकों ने चेतावनी दी कि यदि IEEPA के तहत टैरिफ़ लगाने की राष्ट्रपति की शक्तियां अचानक रद्द कर दी जाती हैं, तो इसका राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति और देश की अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी असर होगा।
फर्म को आशंका है कि संभावित अदालत के फैसले से नकारात्मक और अराजक परिणाम हो सकते हैं, और विदेशी सरकारें संभावित रूप से ट्रेड एग्रीमेंट्स की अनदेखी कर सकती हैं। यह उल्लेखनीय है कि ट्रंप पहले अपने टैरिफ़ को “एक्सटर्नल रेवेन्यू सर्विस” कह चुके हैं, जिसका उद्देश्य संघीय घाटे को कम करना था।
अब तक, पिछले 12 महीनों में सीमा शुल्क से $157 अरब का रिकॉर्ड राजस्व इकट्ठा हुआ है। वर्तमान में, व्हाइट हाउस सभी अमेरिकी ट्रेडिंग पार्टनर्स पर 10%–15% का आधारभूत टैरिफ़ लगाने का लक्ष्य रखता है, जिससे संभावित रूप से सालाना $500 अरब से अधिक की आय हो सकती है।
यार्डेनी रिसर्च के अनुसार, ऐसे बड़े मामले में हार से बॉन्ड यील्ड्स बढ़ सकती हैं और राजनीतिक अनिश्चितता बढ़ने के कारण इक्विटी बाज़ार पर दबाव आ सकता है।