डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार कहा था कि उनके टैरिफ ऐसे होंगे जैसे कोई शानदार डिनर — जिसका बिल कोई और चुका देगा। उनका तर्क था कि अन्य देश यह लागत वहन करेंगे, जबकि अमेरिकी उपभोक्ता आराम से बैठकर इसके फायदे उठाएँगे। लेकिन हालिया शोध ने इस “ट्रेड बहादुरी” के जोश पर ठंडा पानी डाल दिया है। अब यह साफ हो गया है कि ट्रंप के टैरिफ का असली बोझ अमेरिकी व्यवसायों और उपभोक्ताओं के कंधों पर ही पड़ रहा है।
हार्वर्ड के विश्लेषकों ने कालीनों से लेकर कॉफी तक — विभिन्न वस्तुओं की कीमतों का अध्ययन किया और पाया कि आयातित वस्तुओं की कीमतें 4% बढ़ीं, जबकि अमेरिका में निर्मित वस्तुओं की कीमतें 2% बढ़ीं। वे चीज़ें जिन्हें देश में बनाना कठिन या असंभव है — जैसे कि अमेरिका की पसंदीदा सुबह की कॉफी — उन पर असर सबसे ज़्यादा पड़ा। अब एक सामान्य कप कॉफी खरीदने में भी एक छिपा हुआ अतिरिक्त खर्च शामिल है — वह टैरिफ का बोझ, जो शायद ही कभी सार्वजनिक चर्चाओं में आया।
व्हाइट हाउस का कहना है कि अमेरिकियों को एक “संक्रमण अवधि” की आवश्यकता है, जिसके बाद यह लागत विदेशी निर्यातकों पर स्थानांतरित हो जाएगी। इस बीच, विदेशी सप्लायर अपने उत्पादों को अमेरिका में टैरिफ से बचाते हुए लाने के नए तरीक़े खोज रहे हैं। लेकिन फिलहाल, घरेलू कंपनियाँ ही अधिकांश आर्थिक असर झेल रही हैं और उसका एक हिस्सा उपभोक्ताओं पर डाल रही हैं।
कई अमेरिकी इस बात से हैरान हैं कि कॉफी की कीमतें पिछले साल की तुलना में इतनी बढ़ क्यों गई हैं।
इस बीच, अमेरिका-चीन व्यापारिक लेनदेन लगातार घट रहा है। 2025 के पहले नौ महीनों में द्विपक्षीय व्यापार का कुल मूल्य 15.6% गिरा है। अभी के लिए, अमेरिकी अर्थव्यवस्था अब भी उस प्रभाव से उबर नहीं पाई है जिसे ट्रंप ने “सुरक्षात्मक ट्रेड (protective trade)” कहा था।
आख़िरकार, इस पूरे खर्च का बिल आम अमेरिकी उपभोक्ता ही चुका रहा है।