ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त राज्य अमेरिका ने अरबों डॉलर के उच्च-स्तरीय निवेश प्रस्तावों की एक सूची जारी की है, जो न केवल इन दोनों सहयोगियों को पहले से कहीं अधिक करीब लाएगी, बल्कि उनकी साझेदारी को एक नई रणनीतिक ऊँचाई पर पहुँचा देगी। नए निवेश समझौते के तहत, व्हाइट हाउस और कैनबरा की सरकार ने अगले छह महीनों में 3 अरब डॉलर से अधिक निवेश करने का वादा किया है, ताकि महत्वपूर्ण खनिजों (critical minerals) के उत्खनन को गति दी जा सके।
इस समझौते के केंद्र में है पेंटागन, जो प्रमुख सुरक्षा निवेशक (lead security shareholder) की भूमिका निभा रहा है। इसका उद्देश्य है गैलियम (Gallium) धातु के प्रसंस्करण संयंत्र का निर्माण — एक ऐसी धातु जिसके बिना कोई भी ड्रोन उड़ान नहीं भर सकता।
इसके बदले, ऑस्ट्रेलिया को 1.2 अरब डॉलर मूल्य के Anduril स्वचालित पानी के नीचे चलने वाले वाहन (autonomous underwater vehicles) और 2.6 अरब डॉलर के Apache हेलीकॉप्टर मिलेंगे — जिससे उसकी रक्षा क्षमता और भी तेज़, आधुनिक और लंबी दूरी तक ख़तरों को भांपने में सक्षम बन जाएगी।
लेकिन कहानी यहाँ केवल हथियारों और खनिजों तक सीमित नहीं है। ऑस्ट्रेलियाई पेंशन फंड्स — जो अब तक सेवानिवृत्ति लाभों तक सीमित रहते थे — अब अमेरिकी परिसंपत्तियों (assets) की ओर बड़े लक्ष्यों के साथ नज़रें गड़ाए हुए हैं। अनुमान है कि 2035 तक, उनका अमेरिकी बाजारों में निवेश बढ़कर 1.44 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा — जो वर्तमान स्तर से लगभग एक ट्रिलियन डॉलर अधिक है। इसका अर्थ है कि भविष्य के वैश्विक शक्ति-संतुलन में सेवानिवृत्त लोग भी अनजाने में हिस्सेदार बन सकते हैं।
इसके अलावा, ऑस्ट्रेलिया 2 अरब डॉलर का अतिरिक्त निवेश अमेरिका के जॉइंट एयर बैटल मैनेजमेंट सिस्टम (Joint Air Battle Management System) में कर रहा है — यह वह “नर्व सेंटर” है जो हर जेट और ड्रोन को वास्तविक समय में दिशा और सूचना प्रदान करता है।
कुल मिलाकर, यह केवल पैसों का सौदा नहीं है — यह एक संयुक्त रक्षा-संधि की दिशा में बड़ा कदम है, जो किसी भी वैश्विक संकट या व्यापारिक तूफ़ान का सामना करने में सक्षम होगी। मिलकर, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया न केवल रक्षा उपकरण खरीद रहे हैं, बल्कि एक अटूट तकनीकी और रणनीतिक गठबंधन का निर्माण कर रहे हैं।