भारत अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगाए गए दबाव, धमकियों और टैरिफ को नजरअंदाज़ करते हुए रूसी तेल की अपनी खरीद तेजी से बढ़ा रहा है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के अनुसार, भारत ने पिछले महीने रूसी जीवाश्म ईंधन पर 3.1 अरब यूरो खर्च किए, जिससे वह चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बन गया। खास तौर पर, कच्चे तेल का आयात महीने-दर-महीने 11% बढ़कर 2.5 अरब यूरो तक पहुंच गया। इस खर्च का बड़ा हिस्सा निजी रिफाइनरियों से आया, जबकि सरकारी रिफाइनरियों ने अक्टूबर में अपनी खरीद लगभग दोगुनी कर ली।
ट्रम्प की कड़ी नीति में अगस्त से 50% तक के टैरिफ लगाना शामिल है, और उन्होंने वादा किया है कि ये टैरिफ तभी कम किए जाएंगे जब भारत रूसी तेल का आयात घटाएगा। हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका ने अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि टैरिफ में कमी के लिए कौन-सी शर्तें या सीमाएँ तय होंगी। दिसंबर में रूसी तेल कंपनियों पर लगाए गए प्रतिबंधों ने खरीदारों के लिए स्थिति को और जटिल बना दिया है। इसके बावजूद, भारत की सबसे बड़ी रिफाइनरियाँ — जो अपने कच्चे तेल का लगभग दो-तिहाई रूस से आयात करती थीं — ने केवल हाल ही में नए अनुबंधों से दूरी बनाना शुरू किया है।
यह स्थिति भारत के आर्थिक हितों और अमेरिका की राजनीतिक मांगों के बीच नाज़ुक संतुलन को दर्शाती है। वाशिंगटन के दबाव के बावजूद, नई दिल्ली ने रूस के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध बनाए रखे हैं, जो वैश्विक अनिश्चितता के बीच ऊर्जा सुरक्षा और आपूर्ति की लचीलापन सुनिश्चित करने की देश की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।